पांव के पैजनियाँ…आ…
संझा अउ बिहनिया।
गुरतुर सुहावै मोला तान ओ,
गड़गे करेजवा मा बान ओ।
पाँव के पैजनिया….आ…आ..
झुल-झुल के रेंगना तोर,जिवरा मोर जलावै।
टेंड़गी नजर देखना तोर,जोगनी ह लजावै।।
नाक के नथुनिया…..आ..
संझा अउ बिहनिया।
झुमका झूलत हावै कान ओ,
गुरतुर सुहावै मोला तान ओ।
पाँव के पैजनियाँ……
चन्दा कस रूप तोर,चंदैनी कस बिंदिया।
सपना देखत रहिथौं,नइ आवय निंदिया।।
गोड़ के तोर बिछिया…आ..
संझा अउ बिहनिया।
होगेंव मँय रानी हलकान ओ,
गुरतुर सुहावै मोला तान ओ।
पाँव के पैजनियाँ…….
तोर मुसकाये ले ओ, फूल घलो झरत हे।
देख देख तोला सबो,मनखे मन मरत हे।।
चुन्दी जस बदरिया…आ..
संझा अउ बिहनिया।
लेवत हे बोली तोर परान ओ,
गुरतुर सुहावै मोला तान ओ।
पाँव के पैजनियाँ…….
शब्दार्थ:-पाँव=पैर,गुरतुर=मीठा,मोला=मुझे,
मोर=मेरा,टेढ़गी नजर=तिरछी नजर,
परान=जान,चुन्दी=केश,सुहावै=पसन्द।
निषाद राज के दोहा
छोटे ले तँय बाढ़हे, पढ़े लिखे तँय आज।
घर बन सब ला देखबे,रखबे सबके लाज।।
गुरु बिन जग हा सून हे,गुरु के शक्ति अपार।
गुरु हा हरि के रूप हे, गुरु हा दे थे तार।।
जनम मरण हा तोर जी,हावय विधि के हाथ।
अब तो संगी सोच तँय,दया धरम कर साथ।।
तन टूटे ले जुड़ जही, मन टूटे ना पाय।
मन से मन ला जोड़ ले,सबके संग बँधाय।।
जीयत ले तँय राखले,धन दउलत अउ मान।
मर जाबे का ले जबे,दया धरम कर दान।।
बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहरा, कबीरधाम (छ.ग.)